प्रकृति पर्व सरहुल धूम धाम मनाया गया बैगाओ ने फूल खोस कर सभी को दी सुभकामनाएं…
चैनपुर गुमला : चैनपुर प्रखंड में इस वर्ष सरहुल पर्व का आयोजन धूमधाम से किया गया। इस अवसर पर सर्व प्रथम चैनपुर प्रखंड मुख्यालय स्थित सरना स्थल में सरहुल पूजा की पूजा-अर्चना की गई, जिसमें स्थानीय लोगों ने भाग लिया। पूजा के बाद, ग्रामीणों को बैगाओं के द्वारा साल के फूलों से कान में खोस कर पूजा में रखे जल को ढाल कर शुभकामनाएं दी।नगर भ्रमण सरना स्थल से उठी शोभायात्रा में भाग लेते हुए श्रद्धालु कदम से कदम मिलाकर प्राकृतिक पर्व सरहुल का उत्सव मनाते हुए नगर का भ्रमण करते रहे। यात्रा में ढाक, मंदार और घंट की आवाजें गूंज रही थीं। ये श्रद्धालु प्रेमनगर, बस स्टैंड, अल्बर्ट एक्का चौक, विधायक पथ, पीपल चौक और पुराना बैंक रोड होते हुए दुर्गा मंदिर पहुंचे।संस्कृति कार्यक्रम दुर्गा मंदिर पहुँचने पर, एक नृत्य मंडली द्वारा रंगारंग प्रस्तुति दी गई। उत्सव के अंतर्गत प्रतिभाशाली नृत्य मंडलियों को सम्मानित भी किया गया, जिससे प्रतियोगिता का माहौल और भी उत्साहवर्धक हो गया। इस कार्यक्रम में उपस्थित सभी श्रद्धालुओं के लिए जलपान की व्यवस्था की गई थी, जो समिति द्वारा किया गया था।इस शोभायात्रा में सम्मिलित नृत्य मंडलियों का अगुवाई बैगा पुजारी ने की। उन्हें केंद्रीय सरहुल पूजा समिति के अध्यक्ष बसंत रौतिया द्वारा अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए केंद्रीय सरहुल पूजा समिति के तमाम कार्यकर्ता भी उपस्थित रहे।चैनपुर ग्राम बैग के रवि ने जानकारी दी कि चैनपुर प्रखंड में सरहुल पर्व चैत पूर्णिमा को मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि सरहुल पूजा के दौरान क्षेत्र में किसी भी कुदाल या हल से काम नहीं किया जाता जब तक पूजा संपन्न न हो जाए।श्रद्धालु अहले सुबह स्नान करके सरना स्थल पहुँचते हैं, जहां पूजा अर्चना करने के बाद सभी को साल के फूलों का प्रसाद वितरित किया जाता है।विक्रम रौतिया ने सरहुल पूजा को एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयोजन बताया। उन्होंने कहा, “यह पर्व हमारे समुदाय की एकता और भाईचारे का प्रतीक है। सरहुल पूजा हमें प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ हमारे पूर्वजों की परंपराओं को बनाए रखने की प्रेरणा देता है। हम इसे चैत पूर्णिमा के दिन मनाते हैं, जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। इस पर्व के दौरान हमें एकत्रित होकर अपने रीति-रिवाजों का पालन करना चाहिए और इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाना चाहिए।”वहीं, राजेशरण भगत ने सरहुल पूजा के धार्मिक और सामाजिक महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “सरहुल पूजा का उद्देश्य न केवल हमारी धार्मिक आस्था को मनाना है, बल्कि यह हमें प्रकृति के प्रति आदर और प्रेम भी सिखाता है। इस पर्व के दौरान हम कुदाल, हल और अन्य कृषि उपकरणों का उपयोग नहीं करते, जिससे हम प्राकृतिक संपत्ति और पर्यावरण की रक्षा कर सकें। हमारा यह त्योहार हमें यह याद दिलाता है कि हम सभी को मिलकर अपने परिवेश का ध्यान रखना चाहिए।”केंद्रीय सरहुल पूजा समिति के अध्यक्ष बसंत रौतिया कहा कि “केंद्रीय सरहुल पूजा समिति के प्रयासों से इस पर्व को भव्य तरीके से मनाया गया, जो हमारी समुदाय की एकता को दर्शाता है। हमें मिलकर इस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए और इसे और भी समृद्ध बनाना चाहिए।”अंत में केंद्रीय सरहुल पूजा समिति के अध्यक्ष का धन्यवाद किया और इस विशेष पर्व की महत्ता के बारे में बात की।