झारखंड जनाधिकार महासभा, प्रेस विज्ञप्ति, 17 अगस्त 2023
12 जून 2021 को माओवादी सर्च अभियान पर निकले सुरक्षा बलों द्वारा पारंपरिक शिकार पर निकले निर्दोष आदिवासी युवा ब्रम्हदेव सिंह (पिरी गाँव, गारु प्रखण्ड, लातेहार, झारखंड) की गोली मार के हत्या कर दी गयी थी. गाँव से निकलते समय ही युवकों पर सुरक्षा बलों द्वारा फायरिंग हुई जिसमें 24 वर्षीय निर्दोष आदिवासी ब्रम्हदेव सिंह की गोली लगने से मृत्यु हो गयी. ग्रामीणों ने पुलिस को देखते ही हाथ उठा दिए थे और चिल्लाए थे कि वे आम जनता हैं और गोली न चलाने का अनुरोध किया था. लेकिन सुरक्षा बल द्वारा गोली चलाना जारी रहा।
दो सालों से ब्रम्हदेव की पत्नी जीरामनी देवी न्याय के लिए लगातार गाँव से न्यायालय तक संघर्ष कर रही हैं। 14 अगस्त 2023 को झारखंड उच्च न्यायालय ने जीरामनी द्वारा दायर रिट पिटिशन (W.P.(Cr.)/402/2021) में फैसला सुनाते हुए राज्य को आदेश दिया कि जीरामनी देवी को पाँच लाख रुपए मुआवज़ा दिया जाए एवं ब्रम्हदेव सिंह की हत्या के मामले की वरीय पुलिस पदाधिकारी द्वारा नए सिरे से जांच कर तीन महीने के अंदर रिपोर्ट कोर्ट को दी जाए। घटना के बाद ब्रम्हदेव समेत पाँच ग्रामीणों पर दर्ज किए गए प्राथमिकी ( गारु थाना 24/2021 दिनांक 13/06/21) को भी राज्य पुलिस ने ‘सबूत न मिलने’ के आधार पर बंद कर दिया है। यह सही दिशा में कार्यवाई है लेकिन साथ ही साथ पुलिस ने जीरामनी द्वारा दोषी सुरक्षा बलों के विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी (गारू थाना 11/2022 दिनांक 5/05/2022) को भी ‘तथ्य की भूल’ बोलकर बंद कर दिया है। न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि पुलिस ने यह माना है कि सुरक्षा बलों के गोली से ही निर्दोष ब्रम्हदेव की जान गयी। प्राथमिकी को बंद करना दर्शाता है कि दोषी को बचाने की कोशिश की जा रही है। इस आलोक में न्यायालय ने पुलिस द्वारा इस प्राथमिकी को बंद करने के रिपोर्ट को खरीज़ करते हुये वरीय पदाधिकारियों द्वारा निष्पक्ष जांच का निदेश दिया।
झारखंड जनाधिकार महासभा ने इस मामले में विस्तृत तथ्यान्वेषण किया था और पाये गए तथ्यों को सरकार व मीडिया के सामने प्रस्तुत किया था। इस मामले में महासभा लगातार न्याय के लिए संघर्षरत रही है. महासभा उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करती है एवं जीरामनी समेत इस मामले में सहयोग कर रहे सभी ग्रामीणों व सामाजिक कार्यकर्ताओं के संघर्ष व स्थानीय और उच्च न्यायालय में मामले को देख रहे वकीलों की प्रतिबद्धता को सलाम करती है। लेकिन यह न्याय आंशिक है।
इस मामले ने शोषित आदिवासियों के प्रति राज्य के रवैये व पुलिस व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़े किए है। कुछ तथ्य:
• सुरक्षा बल व पुलिस द्वारा शुरुआती दौर में इस मामले को नक्सलियों के साथ एक मुठभेड़ का जामा पहनाने की कोशिश की गयी. पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में भी तथ्यों से विपरीत बाते दर्ज की गयी. जनता के दबाव व कानूनी हस्तक्षेप के बाद ही पुलिस ने सच्चाई को मानते हुये कोर्ट में एफ़िडेविट दर्ज किया कि यह मुठभेड़ नहीं थी एवं सुरक्षा बल के फ़ाइरिंग में गोली लग के निर्दोष ग्रामीण ब्रम्हदेव सिंह की मौत हुई। पुलिस ने इस घटनाक्रम में अपना version लगातार बदला – मीडिया में, दर्ज की गयी प्राथमिकी में व न्यायालय में जमा किए गए एफ़िडेविट में।
• जीरामनी देवी ने अपने पति की हत्या के लिए जिम्मेवार सुरक्षा बलों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करवाने के लिए 29 जून को गारू थाना में आवेदन दिया था. लगभग एक साल के जन संघर्ष व कानूनी लड़ाई के बाद ही पुलिस द्वारा प्राथमिकी (गारू थाना 11/2022 दिनांक 5 मई 2022) दर्ज की गयी.
• पुलिस द्वारा चुपके से ‘तथ्य की भूल’ के आधार पर जीरामनी द्वारा दर्ज प्राथमिकी को बंद करना दर्शाता है कि पुलिस सुरक्षा बल के दोषी पदाधिकारियों को बचाना चाहती है।
• दोषी सुरक्षा बल के विरुद्ध कार्यवाई एवं पीड़ितों के परिवार के लिए मुआवज़े की मांग जीरामनी देवी, ग्रामीणों व महासभा ने पिछले दो वर्षों में लगातार हर स्तर पर की। कई बार इसके विरुद्ध धरना व प्रदर्शन किया गया. साथ ही, जीरामनी ने स्थानीय न्यायालय व उच्च न्यायालय में भी संघर्ष किया। इसके बाद ही, यह आंशिक न्याय मिला है। लेकिन अभी तक सरकार ने दोषी सुरक्षा बल के विरुद्ध कार्यवाई नहीं की है। शायद न्यायालय के आदेश का इंतज़ार है।
इस मामले ने फिर से दर्शाया है कि किस प्रकार निर्दोष आदिवासी फर्जी मामले/फर्जी मुठभेड़/राज्य दमन का शिकार होते हैं एवं उनके परिवार को न्याय मिलना कितना कठिन होता है। दोषी पुलिस व सुरक्षा बल के विरुद्ध महज़ एक प्राथमिकी दर्ज करवाना एक लंबा संघर्ष है।
यह सोचने का विषय है कि उसी ज़िला के आदिवासी अनिल सिंह को पुलिस ने माओवादी को मदद करने के आरोप में गैर-क़ानूनी तरीके से तीन दिनों (23-25 फरवरी 2022) तक थाने में रखा और उन पर अमानवीय शारीरिक और मानसिक हिंसा की. आज तक न हिंसा के दोषी पुलिस पदाधिकारियों के विरुद्ध दंडात्मक कयावई हुई है और न ही अनिल सिंह को मुआवजा मिला है।
जीरामानी मामले में न्यायालय के निर्णय का फिर से स्वागत करते हुये महासभा झारखंड सरकार से निम्न मांगे करती है:
• न्यायालय के आदेश अनुसार तीन महीने के अंदर मामले की निष्पक्ष जांच कर ब्रम्हदेव सिंह की हत्या के लिए ज़िम्मेवार सुरक्षा बल के जवानों व पदाधिकारियों पर दंडात्मक कार्यवाई की जाए.
• न्यायालय द्वारा निर्देशित मुआवज़ा राशि के अलावा राज्य सरकार द्वारा जीरामनी देवी को कम-से-कम 5 लाख रुपए अतिरिक्त मुआवज़ा दिया जाए और उनके बेटे की परवरिश, शिक्षा व रोज़गार की पूरी जिम्मेवारी ली जाए.
• अनिल सिंह (कुकू गाँव, बरवाडीह प्रखंड, लातेहार) पर हिरासत में की गई हिंसा के लिए दोषी पुलिस पदाधिकारियों के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाई हो एवं अनिल को मुआवज़ा दिया जाए.
• स्थानीय पुलिस को स्पष्ट निदेश दिया जाए कि पीड़ितों द्वारा दोषियों, खास कर के पुलिस व प्रशासनिक पदाधिकारियों, पर प्राथमिकी दर्ज करने में किसी प्रकार की परेशानी न हो.
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